Wednesday, 12 July 2023

मानवता कब रही आश्रित मानव देह पर ।

मानवता कब रही आश्रित मानव देह पर ।

क्या भाव ये नहीं उनमे,

जिनकी देह नहीं है मानव की ।


क्या कंगारू जो खड़ा होता दो पैरों पर,

कुछ वैसे ही जैसे बानर, 

और दोनों खड़े होते है कुछ मानव से,

पर क्या मानवता हो सकती है उनके भीतर भी ।


अरे नहीं वो मानवता जो करें मानव शरीर वाले,

कर सके जो दया, 

दे सके जैसे देती है प्रकृति माँ,

बिना किसी आशा के सबको,

बिन भेद भाव,

या कर सके भला सबका।

और करे रक्षा विपत्ति में ।


क्या जटायु का वह प्रयास,

माँ सीता को बचाने का,

था नहीं मानवता।


जो राणा को काल से निकाल लाई,

वो चेतक की छलांग,

थी नहीं मानवता।


क्या देखा नहीं कौवों का आ जाना,

एक भी फँसे कौवे को बचाने ।

या गली के कुत्तों को 

घुसपैठिए के आने पर ।

या मधुमक्खियों का वो दल,

चला जान देकर अपनी थाती बचाने।


एक बार फिर देखो,

शायद जिनका शरीर नहीं मानव का,

उनमे अधिक है मानवता ।

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