Saturday, 1 July 2023

लेकर सब आशाओं की किरने सो जायें ।

लेकर सब आशाओं की किरने सो जायें ।

स्वप्नों के महलों के नरेश बन जायें ।

इच्छाओ की इस भीषण मृगतृष्णा में ।

अंगार उठाकर कहाँ कहाँ ले जाये ।


अगनित सतहों में ओट कर बैठी ।

जीवन की निर्झर स्नेह लता की सुरभि । 

पर स्वप्नों के तुम हो स्वप्नेश स्वयं ही ।

तुम वह बन सकते हो जैसा चाहो ।


तो क्या कोई बनना चाहेगा असफल ।

या कोई आतंकी बनना चाहेगा । 

या कोई ईर्ष्या कर स्वयं को -

जला जला मारेगा ।


या फिर वह बनना चाहेगा नायक ।

या वो सबका रक्षक बन छाएगा ।

या वो अपनी मुश्कान से -

बड़े बड़े कष्टों को टालेगा ।


क्या वो आशीर्वचन चाहेगा ।

या गाली खा मुस्कायेगा ।

या सबका लाड़ला बनेगा ।

या फिर छुपता रह जाएगा ।


वैसे कुछ नहीं अलग है ।

ये स्वप्न और ये जीवन ।

जो जैसा भी चाहेगा ।

वो वैसा बन जाएगा ।


पर धैर्य नहीं खोना होगा ।

इच्छित कर्म करना होगा ।

ये स्वप्न नहीं जीवन है ।

कुछ तो बिलम्ब होगा ही ।


पर धैर्य तुम्हारा इक दिन ।

वो दिन लेकर आयेगा ।

जो स्वप्नों में सोचा था ।

वो भी सच हो जाएगा ।

No comments:

Post a Comment