वो नाराज़ था आज,
या कल भी,
अभी तो ठीक ही था सब ।
कैसे बुरी लगती है वही बात,
जिसपर हंसे थे कुछ ही दिन पहले ।
शायद जुड़े थे इस बात के तार,
कुछ ख़ुशियों और ग़म से।
सोच ही लिया की ना आये ज़िक्र फिर से,
भावना कौन सी उमड़े सुनते ही ।
चलो नई बात करे अब,
दफ़्न कर दें जो भी पुराना है ।
जिनसे जुड़े है दर्द के तार,
माना कुछ है इनमें अच्छा याद करने को,
पर ग़म और ख़ुशी के उलझे तारों को छेड़े क्यों,
क्यों ना आगे सिर्फ़ ख़ुशियाँ लिखें ।
फिर जब याँदें आयेंगी, बातें होंगी, तो ये गमों से ना जुड़ पायेंगी ।
ख़ुशी और ख़ुशी लाएगी ।
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