Saturday, 1 July 2023

हैं गिने हुए ये सारे दिन और साँसे ।

हैं गिने हुए ये सारे दिन और साँसे,

जिनको तुम जीवन कहते हो ।

है लिखा हुआ संदेश तुम्हारे माथे,

फिर भी प्रलाप कर मरते हो ।


ये नहीं सहज जैसा तुमने सोचा होगा ,

ये नहीं सरल जैसा चाहो वैसा ढालो ।

ये फल है उसका जो बोते रहते हो हरपल,

पर निश्चय ये सदियों पहले बोया होगा ।


जब काँटे बोए तो फिर असहज क्यों हो ,

क्या कभी कृषक रोया उन्नत फसलों पर ।

अब उस आनंद को सोच सोच कर भोगों,

एक एक निवाला अपनी उन फसलों का ।


पर जो फल कड़वे मिले इस थाली में ,

उनके बीजों को कभी नहीं तुम बोना ।

पर गर बो दिया है फिर से,

ये पता नहीं कब कब पड़ेगा रोना ।

No comments:

Post a Comment