है मृत्यु सत्य व असत् शेष,
है जगत जाल एक अंधकार,
रिश्ते नाते सब मोह जाल,
हैं लेन-देन के व्यस्त मार्ग।
नित हर लेते हर तर्क शास्त्र,
देते प्रलोभ का मकड़जाल,
दे पद - धन का बैभव अपार,
कर देते बुद्धि का विनाश ।
वह ज्ञानवान जो बुद्धिपूर्ण,
उठ चला हेतु को परम लक्ष्य,
जिस हेतु मिला वर में उसको,
मानव रूपी यह दिव्य रूप ।
कर लेने को वह अश्वमेध,
भोगने हेतु संपूर्ण राज्य,
वह काम, क्रोध व अहंकार,
वह अधम कृत्य, पापी विचार,
वह अतुष्ट भाव सम महामूर्ख,
वह विनयहीन वह लोभ राग ।
कर विजित इन्हें ही है भोगा,
उसने जीवन व परम धाम ।
जीवन जीने का सरल मार्ग,
फिर भी चुनते जो त्याज्य भाव,
वो पाते क्षण भर का प्रमाद,
ना परम प्राप्ति ना जीवन सुख,
वो जाते दुश्चक्रों के द्वार ।
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