Saturday, 1 July 2023

है मृत्यु सत्य व असत् शेष ।

है मृत्यु सत्य व असत् शेष,

है जगत जाल एक अंधकार,

रिश्ते नाते सब मोह जाल,

हैं लेन-देन के व्यस्त मार्ग।


नित हर लेते हर तर्क शास्त्र,

देते प्रलोभ का मकड़जाल,

दे पद - धन का बैभव अपार,

कर देते बुद्धि का विनाश ।


वह ज्ञानवान जो बुद्धिपूर्ण,

उठ चला हेतु को परम लक्ष्य,

जिस हेतु मिला वर में उसको,

मानव रूपी यह दिव्य रूप ।


कर लेने को वह अश्वमेध,

भोगने हेतु संपूर्ण राज्य,

वह काम, क्रोध व अहंकार,

वह अधम कृत्य, पापी विचार,

वह अतुष्ट भाव सम महामूर्ख,

वह विनयहीन वह लोभ राग ।

कर विजित इन्हें ही है भोगा,

उसने जीवन व परम धाम ।


जीवन जीने का सरल मार्ग,

फिर भी चुनते जो त्याज्य भाव,

वो पाते क्षण भर का प्रमाद, 

ना परम प्राप्ति ना जीवन सुख,

वो जाते दुश्चक्रों के द्वार ।

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