नियति क्रम उचित सही,
और यह फलित सही,
विचित्र सत्य पर सही,
अनादि काल से सही,
अनंत काल तक सही।
परंतु यह कथन सही,
कर्म अधीन है सभी,
जगे हुए मनुज सभी,
है मानते इसे सही ।
तथापि स्वयं ईश ने,
कहा था पार्थ देख लो,
मैं बध चुका उन्हें कभी,
जो सामने खड़े अभी ।
उठो समय चला उधर,
जो मारकर उन्हें तुम्हीं,
निमित्त बन के मात्र ही,
जीत लो धरा भुवन,
नियति में जो दिया कभी,
कर्म से प्रसन्न हो,
वर स्वरूप मैंने ही ।
नहीं बदल ना पाओगे,
दृश्य जो भी है दिखा,
सभी है रच दिया कभी,
विधान के निमित्त ही,
जो सभी ने मिल किये,
ये सोचकर की क्या भला,
कई जन्म के बाद भी,
और स्वत्व राज्य में,
व स्वयं के विधान में,
जो दे सके नरेश को,
दंड का प्रसाद भी ।
तो उठो मैं साथ हूँ,
व कपिश साथ है,
कपिध्वज साथ है,
विद्युदिन व वायुदिन,
अग्निदिन, नक्षत्रदिन,
में भी ना कोई बात है ।
पर है ये सब टिका हुआ,
जो बन तुम निमित्त यू,
जीत लो सकल भुवन,
श्रेय योग में लिखा,
इसी समय अभी यहीं ।
करो स्वयं या देख लो,
युद्ध भूमि में सभी,
योद्धा है जो खड़े,
वे अंश है तो मेरे ही - तुम्हारे ही,
तो जब समय है आ गया,
कोई उठ अभी यहीं,
बनेगा वो भी पार्थ ही,
और करेगा वैसा ही,
जो था नियति लिखा,
हो जाने को अभी ।
बिलम्ब अब करो नहीं,
जीत लो जो सत्य है,
नियति व उस विधान में,
जो बना लिया मनुष्य ने,
और फिर मैं साथ हूँ,
जो होता सिर्फ़ सत्य के,
और सिर्फ़ धर्म के ।
तो मत करो बिलम्ब पार्थ,
अब शुरू करो यहीं ।
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