Tuesday, 4 July 2023

अरे नहीं है वे इंसान ।

 अरे नहीं है वे इंसान,

बस ओढ़ लिए है सबने ,

आवरण इंसान के।


पर असल में है इनमें,

कोई कुत्ता, लोमड़ी या गिरगिट,

और ना जाने क्या क्या ।


भेष बदलें है सभी ने,

खा लेने को अंतिम इंसान।

और बना लेने को अपनी सरकार ।


जिससे जब बात होगी,

ग़लत की, झूठ की, ठगने की।

या होगी क़त्ल की, बलात्कार की,

तो ये ठहरा पायेगे सही उसे,

और देंगे दलील उसके पक्ष में ।


क्यूकी नहीं मानते ये ग़लत,

छल लेना औरों की दौलत,

उनके काम का श्रेय, 

उनके हिस्से का सुख-चैन,

और उनके अंग व रक्त,

और ना जाने क्या क्या ।


नहीं चाहते ये इंसानों को,

खाने देना एक भी निवाला,

जो है उनके हक़ का, ईमान का ।


ज़रूरत है पहचानने की, क्या है इनमें कोई इंसान।

और फिर ज़रूरत जोड़ लेने की हर एक को,

जिनमे बची है थोड़ी भी आशा इंसान बने रहने की।


और ज़रूरत है बनाने की सरकार इंसानों की,

और हर किसी को देने की उसका काम ।

जैसे कुत्ते को दूसरे कुत्ते सूंघ कर पहचानने की,

या लोमड़ी को चालांकियाँ समझ कर लोगों को न्याय दिलाने की,

या गिरगिट को ये देखने की किसने कब था रंग बदला और क्यों।


हाँ सिर्फ़ इंसान होना काफ़ी नहीं ,

है ज़रूरत जगाने की इंसानियत,

उन सब में भी जो स्वभाव बस,

बन गये है दरिंदे लोभ में कुछ लाभ में ।


पर है उनका अवगुण भी काम का इंसान के,

तो सिर्फ़ नहीं काफ़ी बने रहना इंसान ।

पर सिखाना पाठ सबको, जो बनाये उनको भी कुछ वैसा ही,

जैसे इंसान रहते है बस्तियों में ।


और देना उनको भी सम्मान उनके काम का,

जो नहीं करता स्वप्न में भी,

चाहे हो देव तुल्य इंसान ।

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