Saturday, 15 July 2023

तो ले चला मैं संग कर्मों की बही को ।

तो ले चला मैं संग कर्मों की बही को,

जिसका बराबर हो गया है लेना-देना ।

और छोड़ वो सब जो दुनिया के निशाँ है,

जिनपे हमारा अब नहीं कोई निशाना ।


लो आज माधव वचन अपना यू निभाओ,

मिल जाये अपगा सागर सम तुममें ही जाकर ।

और पुनः ना जुड़ पाये कोई बंधन ऐसा,

जिससे कभी भी हो पुनः इस जग में आना ।


वैसे कभी मैं सोचता हूँ क्यों गिरा मैं,

इस सघन तम के गर्त में क्या सोच करके ।

या ये तो नहीं की तुमने ही मुझको गिराया,

अपनी क्षणिक आनंद लीला के निमित्त यू ।


और छीन ली वो समझ जो मुझको मिली अब,

अनगिनत सब जतन कर गुरुओ से सीखे ।

क्या किया होगा कि जिसकी सजा थे,

अनेकों जीवन के ये जंजाल जकड़े,

और बताया ये नहीं की शर्त है एक,

जो पहेली बन बही के गणित में है ।


पर अब नियम पूरा हुआ इस खेल का जो,

तुमने लीला रच रचा के था बनाया ।

लो शर्त पूरी हो गई है उस बही की,

जिसमें कभी जोड़ा घटाया ना शून्य आया ।

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