चिंतन...
चाहतें, जिनको मायूसी रोक नहीँ पाती और एकाकीपन मार नहीँ पाता!
उलझने,बुद्धि जिन्हें सुलझा नहीं पाती और विवेक जिसे छू भी नहीं पता !
अपनापन, जो वर्षो न मिलने पर भी हर पल साथ होने का एहसास देता है!
ज्ञान, जो मुक्ति तक नहीं जाता, और अनजान रहना चाहता है!
प्यार, जो रह-रह कर इतना छलक जाये, की एक-एक रोम उसमे भीग जाये!
आँखे, जो उसे देखने के बाद कुछ और नहीं देखना चाहें!
भूख, जिसे कोई पकवान शांत न कर सके और वो पल पल सताती रहे!
आकार, जो रूप और रंग से परे हो और उसे इसका ज्ञान भी हो भी हो।
क्या ईश्वर ऐसा ही होता है, क्या मैंने खोज लिया उसे, भले ही वो प्रसन्न नहीं मुझसे।
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